दीपावली के इतिहास से जुड़ी यह 17 बातें आपको नहीं पता होगी
History Of Deepawali
Why To Celebrate Diwali in india
दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। दीपावली से जुड़े कुछ रोचक तथ्य हैं जो इतिहास के पन्नों में अपना विशेष
स्थान बना चुके हैं। इस पर्व का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है, जिस कारण यह त्योहार किसी खास समूह का न होकर
संपूर्ण राष्ट्र का हो गया है।
धर्म के दृष्टि से दीपावली के त्योहार का ऐतिहासिक महत्व है। अनेक धर्मग्रंथ दीपावली का ऐतिहासिक महत्व हमें
बतलाते हैं। आइए जानते है दीपावली से जुड़े धार्मिक तथ्य…।
विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें
पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली
मनाएंगे।
महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तब बलि से भयभीत
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर प्रतापी राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी।
महाप्रतापी राजा बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी
दान में दे दी।
त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे तब उनके आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत
किया गया और खुशियां मनाई गईं।
कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंहजी बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस
लौटे थे।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों-लाखों दीप
जलाकर दीपावली मनाई थी।
कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन
अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।
500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली
मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था।
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया।
महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं।
यह भी कथा प्रचलित है कि जब श्रीकृष्ण ने आतताई नरकासुर जैसे दुष्ट का वध किया तब ब्रजवासियों ने अपनी
प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की।
राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली
का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी
महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके
रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।
मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित
कार्यक्रमों में भाग लेते थे।